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Wednesday 15 August 2018

कुछ हट के ....।

मैं सोचता हूँ
कुछ ऐसा ही जेहन में उभरता है,
जब उमंग और उत्साह से लबरेज
इस एक दिन ...शायद हाँ
इस एक दिन
देश प्रेम सार्वजनिक होकर उभरता है।
और जब लहराता है तो
कई जोड़ी आंखे उसे निहारते
वही कही आसमान की
अनंत गहराई में खो जाती है शायद ।
शायद हाँ मेरी भी निगाहे
उस विस्तृत अम्बर में कुछ खिंची हुई
रेखाओ को ढूंढती है
विस्तृत नभ में खोता हुआ
जैसे खुद में सिमटता जाता हूं।
इस एक दिन...शायद हाँ
इस एक दिन
बंधन की कुछ डोर जेहन में
जैसे खुद बांधने लगता है ।
वह उमंग और उत्साह
कुछ मलिन हो चेहरे पर उभरता है
एक-एक कर कई बंधन उभरते है
खुले आसमान में लहराते हुए
आज स्वतंत्र और परतंत्र की
कई गांठे मन मन मे
खुलते और बंधते है।
मैं बस इतना सोच पाता हूं
जैसे तिरंगा बेफिक्र
आसमान में लहरा रहा है
वैसे क्या हम कभी
स्वतंत्र हो इसी धरती पर
कभी विचर पाएंगे ??

       आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Monday 26 May 2014

आशा भरी पहल


                              इतिहास गतिमान है। बिलकुल समय की धार की तरह। हर वक्त पल-पल का लेखा जोखा कही न कही रखा जा रहा है। अंतर बस इतना है की कुछ पल स्वर्ण अक्षरो में दर्ज होते है और कुछ के लिए बस नीली स्याही उकेड़ दी जाती है। वक्त की धूल भरी कितनी भी मोटी  परत उसके ऊपर क्यों न चढ़ जाए स्वर्ण अक्षरो में दर्ज समय अपनी चमक यो ही बिखेर देते है बाकी इतिहास के पन्नो में धूल धूसरित हो जाते है। बदले हुए स्थिति इतिहास के कई मान्यताओ को बदल कर रख देता है। पुराने पन्नो को पलटने से बेहतर है की कोई नए अध्याय की शुरुआत की जाय।उसमे दर्ज तथ्यों के ऊपर ही मंथन छोड़ या तो अब नए कायदे शुरू करने का समय है या नहीं तो कम से कम  इसे तो परखा तो जा ही सकता है। हेकड़ी भरी एक उद्घोषणा लाखो कड़ोरो के मन को आलादित कर सकता है किन्तु वो जीवन से जुड़ी मानवता के बंधन को बस तार-तार ही करती है। यूँ तो भारतीय इतिहास उन मनीषियों और मानवता के रक्षको से भरा परा है जो  सम्पूर्ण सृष्टि समुच्चय को ही अपने वाणी और कर्तव्य से उद्घोषित  करता रहा है।
                          तमाम कड़वे अनुभव के वावजूद भी नयी सुबह के उम्मीद का दामन न छोड़ने कि सोच  ही मानव समाज को एक नयी दिशा और ऊर्जा  देता है। आग्रह और पूर्वाग्रहों के बीच का कोई न कोई रास्ता तो अख्तियार करना ही होगा। असंवाद की दीर्घकालिक परिणीति सिर्फ और सिर्फ अविश्वास की खाई को और गहडा ही कर सकता है। उस अंधकूप की ओर जहाँ उम्मीद की कोई स्याह किरण भी न दिखाई पड़े , कदम बढ़ाना किसी के भी हित में नहीं होगा। अपने हितो की रक्षा और दूसरों के हितो का सम्मान ही इस देश की युगो पुरानी परमपराएँ है। बदलती मान्यताओ के साथ भी हमने अपने परम्परा को कायम रखा है। एक नयी पहल एक नए युग का सृजन कर सकता है। भविष्य के गर्भ में छिपे परिणाम को अभी तो जानना कठिन है किन्तु यदि नेकनीयत से कोई भी कदम उठाया जाता है परिणाम सकारात्मक होते है। विगत अनुभव अवश्य ही ऐसे विचारो के ऊपर ग्रहण लगते हो किन्तु अपनी ओर  से एक पहल सामने वाले को पुनः एक बार सोचने को मजबूर तो करेगा। इतिहास इस बात का साक्षी है की युद्ध की अंतिम परिणति भी शांति के के मेज वार्ता पर ही हुई है। फिर कदम को उतना बढाने से पूर्व क्यों न एक बार पुनः मिल बैठ कर प्रयास किया जाय। बेसक ये अतिश्योक्तिपूर्ण हो किन्तु कितना अच्छा हो यदि मानव सीमा से आजाद हो पाते।